मणिपुर चक्र शरीर के चक्र क्रम में तीसरा चक्र है। मणिपुर चक्र को नाभि चक्र भी कहते हैं। इस चक्र के देवता भगवान रूद्र है तीन आँखों वाले शरीर में विभूति लगी हुई इनका सिंदूरी वर्ण है (मतान्तर से इस चक्र के अभीष्ट देवता ब्रह्मा जी हैं ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के नाभि-कमल से उत्पन्न हुए है और जिव-श्रृष्टि के निर्माता भी यही हैं ) यह चक्र मणि+पुर नामक शब्द से बना है मणि अर्थात मोती और पुर का अर्थ है शहर, इसे सौर जाल भी कहते हैं। यह स्वास्थ्य, सुरक्षा, ओज और तेज तत्व प्रदान करने वाला चक्र है। इसे सूर्य चक्र भी कहते हैं। इस चक्र की देवी लाकिनी हैं जो सब का उपकार करने वाली है, इनका रंग काला वस्त्र पिले हैं देवी आभूषण से सजी अमृतपान के कारण आनंदमय हैं। इस चक्र का तत्व है अग्नि और रंग है पीला. पिला रंग प्राण उर्जा, आत्मा तथा बुद्धि का प्रतीकात्मक रंग है। यह चक्र कमल के दश पंखुड़ियों के प्रतीकात्मक रूप में दर्शाया जाता है यह दश पंखुडियां दस अत्यावश्यक महत्वपूर्ण शक्तियाँ है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाये
रखने में उसकी मदत करती हैं। यह चक्र आत्म विश्वास, आत्म आश्वासन, स्पष्ट विचार, ख़ुशी तथा ज्ञान-बुद्धि, स्वास्थ्य और व्यक्ति के उचित निर्णय लेने की शक्ति का है।
यह चक्र नाभि मूल अर्थात नाभि से थोड़ा ऊपर स्थित होता है। यह चक्र शरीर का केंद्रबिंदु है और व्यक्ति की चेतना का भी केंद्रबिंदु है। और यही चक्र शरीर के अन्दर की उर्जा का संतुलन भी करता है।
इस आर्टिकल में मैं आपको उन सभी तरीकों के बारे में बताऊंगा जिनसे आप जान पाएंगे कि अपने स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत कर पाएंगे .
मणिपुर चक्र के संतुलित करने की ध्वनि
मणिपुर चक्र के संतुलित होंने के फ़ायदे
मणिपुर चक्र जब संतुलित होकर सही ढंग से कार्य करने
लगता है तब व्यक्ति के अन्दर से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली,
लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि अवरोधक तत्व दूर हो जाते
हैं। व्यक्ति खुद को तथा दूसरों को प्यार करता है तथा
उनका सम्मान करने लगता है । यह चक्र मूल रूप से
आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए
आत्मवान होना बहोत जरुरी है। आत्मवान होने के लिए
आत्मशक्ति का अनुभव करना जरुरी है कि आप शरीर
नहीं आत्मा हैं।
मणिपुर चक्र का शरीर के अंग भाग पर अधिकार
यह चक्र मुख्य रूप से अग्नाश्य (Pancreas) तथा पाचन क्रिया (Digestive System) के कार्य प्रणाली को संचालित करता है जो जठराग्नि द्वारा भोजन को उर्जा में परिवर्तित करता है। यह पेट, यकृत (Liver) बड़ी आंत को नियंत्रित करता है! इस चक्र असंतुलित होने पर जठराग्नि की अग्नि मंद पड़ जाती है फिर भोजन पचने के बजाय सड़ता है जिससे धीरे धीरे बिमारियों का पदार्पण व्यक्ति के शरीर में होने लगता है।
मणिपुर चक्र के दूषित होने पर होने वाली बीमारियाँ
जैसे - पाचन संबंधी रोग, अजीर्ण, मधुमेह (Sugar) उच्च रक्तचाप, पेस्टिक, अल्सर, अल्परक्तशर्करा, कब्ज, आंत्रकृस्मृतिदोष, , थकान व पेट की लगभग सभी प्रकार की बीमारियाँ ।
अगर यह चक्र कम गतिशील है तो घबराहट, भय, डरपोकपन, आत्मविश्वास की कमी, अशांत, हमेशा असफलता का डर, निर्णय न ले पाने कमी, असुरक्षा की भवना, आत्महत्या के विचार आदि आना जैसे भावनात्मक मामले भी देखे जाते हैं। वहीं अगर यह चक्र असंतुलित होकर ज्यादा गति से कार्य करता है, तो व्यक्ति में आक्रामकता, अधिक उर्जा जिसको नियंत्रित करने की आवस्यकता होती है येसे व्यक्ति आलोचनात्मक व तेज- मिजाज प्रवित्ति के हो जाते हैं। अगर यह प्रबंध आदि का कार्य देखते हैं तो जरुरत से अधिक कार्य में डूबे रहते हैं व अपने अधिनस्त कर्मचारियों को डरा धमकाकर रखने का निरंतर प्रयाश करते हैं।